पर्वतराज हिमालय

Himalaya
parvatraj himalaya

parvatraj himalaya

उच्च हिमालय पर्वत राज,
खड़ा पहनकर हिम का ताज,
ऊंचा मस्तक रख दिन-रात,
आसमान से करता बात।

मेघों को लेता है रोक,
देते जो चरणों में ढोक,
आंधी से अड़ जाता वीर,
वह सकती है इसे ना चीर।

इसका ह्रदय देश कश्मीर,
इसके मस्तक पर पामीर,
इसके अंग अंग में फुल,
पंजाब इसी की धूल।

इसमें है केसर के बाग,
देवदार गाते हैं राग,
चंदन जैसी यहां सुगंध,
झरने गाते प्यारे छंद।

गंगा यमुना परम पुनीत,
है इसके जीवन का गीत,
इस पर मानसरोवर झील,
सज्जन मन में जैसे शील।

भारत को इस पर अभिमान,
इससे भारत बना महान,
खड़ा युगों से बन प्राचीर,
रक्षा करता यह रणधीर।

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